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अभियान परिचय

समिति प्राचीन भारत के सभी योद्धाओं के साथ महाराणा प्रताप के 100 स्मारक और 500 प्रतिमाएं बनाकर इतिहास संरक्षण के संबंध में भारत की सबसे महानतम, अतुलनीय, अविश्वश्नीय और महत्वाकांक्षी परियोजना पर काम कर रही है, जिसका नाम हैं महाराणा प्रताप स्मारक अभियान

हमारी समिति पूरे भारतवर्ष में महाराणा प्रताप और वीर पुरुष एवं वीरांगनाओं के लिए के 100 स्मारक स्थापित करेगी । इन 100 स्मारकों में से ज्यादातर स्मारक महाराणा प्रताप के होंगे लेकिन उसमें से कुछ स्मारक भारतवर्ष के उन महान योद्धाओं के भी होंगे जिनकी वजह से आज आप और हम तथा हमारा देश इस स्थिति में है ।

उन महान योद्धाओं में कुछ नाम है जैसे पृथ्वीराज चौहान, छत्रपति शिवाजी, वीर दुर्गादास राठौड़, झाला मानसिंह, हाडी रानी, पन्ना धाय मां, रामशाह सिंह तोमर, राणा पूंजा, भामाशाह आदि महापुरुषों की प्रतिमाएं भी पूरे भारतवर्ष में लगाएंगे ।

समिति द्वारा स्थापित किए जाने वाले 100 स्मारकों में से महाराणा प्रताप के 12 स्मारक भारत में स्थित शिव भगवान के 12 ज्योतिर्लिंग पर स्थापित किए जाएंगे एवं उसके अलावा पूरे भारतवर्ष में सभी वीर पुरुषों के लिए स्थान चिन्हित करके जल्द से जल्द कार्य प्रारंभ किया जावेगा ।

  • महाराणा प्रताप हमारे देश का मान व गौरव होने के नाते हमारा नैतिक कर्तव्य हैं कि हम उनके सम्मान में जितना भी कर सके वो हम सब आपके सहयोग से करेंगे
  • सम्पूर्ण भारतवर्ष में जहां पर महाराणा प्रताप का स्मारक नहीं हैं, उन क्षेत्रो में महाराणा प्रताप का स्मारक स्थापित किया जायेगा ।
  • अभियान के द्वारा सम्पूर्ण भारतवर्ष में महाराणा प्रताप की ऐतिहासिक वीर गाथा से सभी लोगो को अवगत कराया जायेगा । भारतवर्ष के बहुत से लोगो को महाराणा प्रताप के इतिहास की सही और सम्पूर्ण जानकारी नहीं हैं, अतः उन लोगो को सम्पूर्ण जानकारी प्रदान की जाएगी ।
  • इस अभियान की सफलता के लिए भारतवर्ष के आमजन, जन प्रतिनिधियों, कर्मचारियों, एवं सरकार से सहयोग अपेक्षित हैं. क्योंकि महाराणा प्रताप को हम जितना भी सम्मान दें वो कम है फिर भी हम सब मिल कर आप लोगो के सहयोग से महाराणा प्रताप को एक सच्ची श्रद्धांजलि अर्पित करना चाहते हैं

महाराणा प्रताप स्मारक अभियान

भारत की पहली संस्था बनाएगी महाराणा प्रताप के 100 स्मारक और 500 प्रतिमाएं

अभियान के उद्देश्य और आवश्यकता

उद्देश्य

महाराणा प्रताप स्मारक अभियान मूल रूप से 3 उद्देश्यों को लेकर चलाया जा रहा अभियान हैं

1. सामाजिक समरसता और सर्वधर्म समभाव

‘सामाजिक समरसता’ एक ऐसा विषय है जिसकी चर्चा करना एवं इसे ठीक प्रकार से कार्यान्वित करना आज समाज एवं राष्ट्र की मूलभूत आवश्यकता है । इसके लिए हमें सर्वप्रथम ‘सामाजिक समरसता’ के अर्थ का व्यापक अध्ययन करना आवश्यक है । संक्षेप में इसका अर्थ है सामाजिक समानता।

यदि व्यापक अर्थ देखें तो इसका अर्थ है – जातिगत भेदभाव एवं अस्पृश्यता का जड़मूल से उन्मूल कर लोगों में परस्पर प्रेम एवं सौहार्द बढ़ाना तथा समाज के सभी वर्गों एवं वर्णों के मध्य एकता स्थापित करना। समरस्ता का अर्थ है सभी को अपने समान समझना। सृष्टि में सभी मनुष्य एक ही ईश्वर की संतान है और उनमें एक ही चैतन्य विद्यमान है इस बात को हृदय से स्वीकार करना ।

यदि देखा जाये तो पुरातन भारतीय संस्कृति में कभी भी किसी के साथ किसी भी तरह के भेदभाव स्वीकार नहीं किया गया है । हमारे वेदों में भी जाति या वर्ण के आधार पर किसी भेदभाव का उल्लेख नहीं है । गुलामी के सैंकड़ों वर्षों में आक्रमणकारियों द्वारा हमारे धार्मिक ग्रन्थों में कुछ मिथ्या बातें जोड़ दी गई जिससे उनमें कई विकृतियां आ गई जिसके कारण आज भ्रम की स्थिति उत्पन्न हो गई है ।

वेदों में जाति के आधार पर नहीं बल्कि कर्म के आधार पर वर्ण व्यवस्था बतायी गयी है । जैसे कि ब्राह्मण का पुत्र वही कर्म करने से ब्राह्मण हुआ एवं शूद्र का पुत्र शूद्र क्योंकि जो व्यक्ति जैसा कार्य करता था उसी अनुसार उसे नाम दिया गया । समय के साथ-साथ इन व्यवस्थाओं में अनेक विकृतियां आती गई जिसके परिणामस्वरूप अनेक कुरीतियों एवं कुप्रथाओं का जन्म हुआ । इन सबके कारण जातिगत भेद-भाव, छूआछूत आदि की प्रवृति बढ़ती गई । इसी के चलते उच्चवर्ग एवं निम्नवर्ग का जन्म हुआ ।

यह भेदभाव इतना बढ़ गया कि उच्च वर्ग निम्न वर्ग के लोगों को हीन दृष्टि से देखने लगा और वे अधिकाधिक पिछड़ते गए । मंदिरों में प्रवेश पर रोक, शिक्षण संस्थानों में भेदभाव, सार्वजनिक समारोहों में उनकी अनदेखी ऐसे कई कारण हैं जिसके कारण यह लोग उपेक्षित होते गये । उच्च वर्ग के लोग इन लोगों के घर आना जाना तो क्या उनके हाथ का पानी पीना भी धर्म भ्रष्ट हुआ मानने लगे । जाति-भेद का दोष ही है जिससे समरसता का अभाव उत्पन्न होता है ।

इस अभियान के माध्यम से हम महाराणा प्रताप द्वारा दिए गए सामाजिक समरसता और सर्वधर्म समभाव के सन्देश को जन जन तक पहुँचाने का कार्य करने का प्रयास करेंगे जिस प्रकार से महाराणा प्रताप ने सभी धर्म और समुदाय के लोगो को साथ में लेकर अपना जीवन यापन किया और राज किया उससे हम सभी को प्रेरणा लेनी चाहिए|

2. भारतीय इतिहास का संरक्षण

भारत का इतिहास कई हजार साल पुराना माना जाता है । भारत एक जीवंत और विविध सांस्कृतिक, विशाल भूगोल और इतिहास से जुड़ा हुआ देश है । देश की ऐतिहासिक उपलब्धियों के सबूत अभी भी दौरा कर रहे वास्तुकला, विरासत स्थलों और परंपराओं के पूजा और अध्ययन में दिखाई देता है ।

इन विरासत स्थलों में से कुछ बहुत अधिक वैश्विक और राष्ट्रीय ध्यान आकर्षित करते हैं । हालांकि, इन विरासत स्थलों को शहरीकरण की जोखिम, आर्थिक विकास और अप्रत्याशित परिवर्तन के निहितार्थ का सामना करना पड़ता है । विश्व धरोहर स्थलों, प्राचीन स्मारकों और पुरातात्विक स्थलों का संरक्षण राष्ट्रीय महत्व का है और पर्यटन के विकास, जो आर्थिक विकास का प्रमुख स्त्रोत में से एक है को बढ़ावा देने में मदद करता है ।

देश के प्रत्येक जिले में सक्रिय संगठनात्मक ढांचा खड़ा किया जाएगा और देश के ज्यादातर इतिहासकारों को संगठन से जोड़ा जाएगा । यह निर्णय भी लिया गया कि देश के इतिहास का पुनर्लेखन करने के लिए इतिहासकारों की फौज तैयार की जाएगी । कक्षाओं में पाठ्यक्रमों को पढ़ाने के साथ देश का वास्तविक इतिहास पढ़ाने का निवेदन इतिहासकारों से किया जाएगा ।
इस अभियान के माध्यम से हम सम्पूर्ण भारत में भारतीय इतिहास की सही जानकारी के साथ साथ इसके संरक्षण के लिए लोगो को जागरूक करेंगे ।

3. महाराणा प्रताप के विचार लोगो तक पहुँचाना

1. मनुष्य का गौरव और आत्मसम्मान उसकी सबसे बङी कमाई होती है । अतः सदा इनकी रक्षा करनी चाहिए।
2. मातृभूमि और अपने माँ मे तुलना करना और अन्तर समझना निर्बल और मुर्खो का काम है ।
3. सम्मानहीन मनुष्य एक मृत व्यक्ति के समान होता है ।
4. ये संसार कर्मवीरो कीही सुनता है । अतः अपने कर्म के मार्ग पर अडिग और प्रशस्त रहो
5. समय इतना बलवान होता है, कि एक राजा को भी घास की रोटी खिला सकता है ।
6. समय एक ताकतवर और साहसी को ही अपनी विरासत देता है, अतः अपने रस्ते पर अडिग रहो ।
7. हल्दीघाटी के युध्द ने मेरा सर्वस्व छीन लिया हो। पर मेरी गौरव और शान और बढा दिया ।
8. जो सुख मे अतिप्रसन्न और विपत्ति मे डर के झुक जाते है, उन्हे ना सफलता मिलती है और न ही इतिहास मे जगह ।
9. अपने अच्छे समय मे अपने कर्म से इतने विश्वास पात्र बना लो कि बुरा वक्त आने पर वो उसे भी अच्छा बना दे ।
10. जो अत्यंत विकट परिस्तिथत मे भी झुक कर हार नही मानते। वो हार कर भी जीते होते है ।
11. अगर सर्प से प्रेम रखोगे तो भी वो अपने स्वभाव के अनुसार डसेगाँ ही ।
12. शत्रु सफल और शौर्यवान व्यकति के ही होते है ।
13. एक शासक का पहला कर्त्यव अपने राज्य का गौरव और सम्मान बचाने का होता है ।
14. तब तक परिश्रम करते रहो जब तक तुम्हे तुम्हारी मंजिल न मिल जाये ।
15. अपनी कीमती जीवन को सुख और आराम कि जिन्दगी बनाकर कर नष्ट करने से बढिया है कि अपने राष्ट्र की सेवा करो ।
16. मनुष्य अपने कठीन परिश्रम और कष्टो से ही अपने नाम को अमर कर सकता है ।
17. अपने और अपने परिवार के अलावा जो अपने राष्ट्र के बारे मे सोचे वही सच्चा नागरिक होता है ।
18. अगर इरादा नेक और मजबूत है । तो मनुष्य कि पराजय नही विजय होती है ।
19. कष्ट,विपत्ती और संकट ये जीवन को मजबूत और अनुभवी बनाते है। इनसे डरना नही बल्कि प्रसन्नता पूर्वक इनसे जुझना चाहिए ।
20. सत्य,परिश्रम,और संतोष सुखमय जीवन के साधन है। परन्तु अन्याय के प्रतिकार के लिए हिंसा भी आवश्यक है।
21. नित्य, अपने लक्ष्य, परिश्रम, और आत्मशक्ति को याद करने पर सफलता का मार्ग सरल हो जाता है ।
22. गौरव, मान- मर्यादा और आत्मसम्मान से बढ कर कीमती जीवन भी नही समझना चाहिए ।
23. अपनो से बङो के आगे झुक कर समस्त संसार को झुकाया जा सकता है ।
24. अन्याय, अधर्म, आदि का विनाश करना पुरे मानव जाति का कतर्व्य है ।
25. अपने कतर्व्य, और पूरे सृष्टि के कल्याण के लिए प्रयत्नरत मनुष्य को युग युगांतर तक स्मरण रखा जाता है ।

इस अभियान के माध्यम से हम सम्पूर्ण भारत में भारतीय इतिहास की सही जानकारी के साथ साथ इसके संरक्षण के लिए लोगो को जागरूक करेंगे ।

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